महिलादिवस की शुभकामनाओ के साथ समर्पित
एक नारी की ह्र्दय
वेदना
(अपनो के
बींच पराई)
जन्म के साथ ही मां बाप ने,
पराई अमानत मान कर,
पाल पोश कर बड़ा किया !
बड़ा होने पर,
पराए हाथों में सोंप दिया !
ऐसे हाथों में,
जिनके अपने, अपने थे,
और पराई थी मैं !!
इनकी मां ने,
विवाह के साथ ही,
इनको समझाया था !
कि ये तो उन के अपने हैं,
क्योंकी इनको,
उन्हीने जाया था !!
कोई पराई जाई घर में आई थी,
तो वो थी मैं !
सब अपनों के बीच,
सब के लिये पराई !!
एक नया जन्म,
मैं से, हम बनीं!
मेरे स्वभिमान का अन्त,
इनके अहमं में वृद्धि
हमबिस्तर होने पर,
वस्तु सा बोध,
एक ऐसी वस्तु,
जो बाहर से आई थी !
इस्तमाल किये जाने पर भी,
सबके लिये पराई थी !!
धीरे से अपने आप को,
इस परिवेश में सम्भाला था !
सब की जरूरतों के हिसाब से,
खुद को ढाला था !
जिनको पाने के लिये,
खुद को मिटा दिया !
समय - समय पर,
उन्होने भी जता दिया,
कि पराई हूं मैं !!
एक बार फ़िर जन्मी थी,
नई आशाओं और नव चेतनाओं के
साथ !
मेरी कोख में,
इनका वंश पल रहा था !
मुझे पहिली बार जीवन में,
कुछ अपना सा लग रहा था !
बड़ी सिद्दत से सींचा था,
उस को भी मैंने !
पर जैसे ही बड़ा हुआ ,
एक बार फ़िर जता दिया गया,
कि वो तो उनका अपना है !
और पराई हूं मैं !!
This is an original poem and publishing first time in my blog and looking forward for better break ……..
Name of the Poem: पराई हूं मैं
Name of the Poet: Dr.Meenal Tiwari
Copyright: Original Author / Poet / Publisher
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