Swhrachit Hindi Kavitayen
I would like
to dedicate this page to my nanaji (Acharya Shaiv Kendra Tripathi ) who was a
great poet of Bundelkhend region. He wrote
poems in sixteen Indian languages .I had not got an opportunity to listen him as
he passed away in my childhood. From this page I would pay my tribute to him.
012.शुन्य
मेरे इर्द गिर्द एक मुस्तफा सी आवाज़ हो तुम ,,
एक अनकहा और अनसुना,
अलफ़ाज़ हो तुम !
एक अनजाना,अनचाहा,
पर मनचाहा एहसास हो तुम,
एक रुहु या फिर एक जमीर हो तुम,
तुम जो भी हो, मेरे इर्द गिर्द ही मोजूद हो तुम !
मेरे पास हो तुम ,एक एहसास हो तुम
पर फिर भी में तुम्हे सुन नही सकती ?
जबकि मेरी हर धड़कन की आवाज हो तुम !
आखिर तुम हो कोंन ?
किधर से आते हो और किधर चले जाते हो ?
खुद में एक खुआब होते हुए भी,
मुझे हकीकत का बोध कराते हो !
तुम देते हो दस्तक, मेरे जमीर को,
मेरे हर कर्म से पहिले ,
तुम ही देते हो मुझे एक शब्दकोष,
जिंदगी की हर नज्म से पहिले !
तुम्हारे रुहु की खुशबू '
इन बहारो में छिपी है !
तुम्हारे वजूद की मोजूदगी ,
अफताब और महताब में भी कही है !
तुम्हारा अंत कभी हो नहीं सकता ,
पर न जाने क्यों ?
तुम्हारे जन्म की कोई दस्तान भी तो नहीं है !!
This poem also has published before in “Vama magazine
in the February, 2003 edition page no- 85.
Name of the Poem: Shoonya
Name of the Poet: Dr.Meenal Tiwari
Copyright: Original Author / Poet / Publisher
Name of the Poet: Dr.Meenal Tiwari
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मीनल
013.कामयाब होती कोशिशें
मेरा दस महिने का बेटा
दस कदम आगे है मुझसे
ळोग कह्ते हैं, कि हम बच्चों के साथ कुछ कर नहीं पाते
ळोग कह्ते हैं, कि हम बच्चों के साथ कुछ कर नहीं पाते
जबकी वो ही हमें,हर पल कुछ करते रहने की प्रेणना, दे जाते हैं
न थकना न रुकना, बस कुछ करते रहेना
हर पल कुछ नया और पहेले से बेह्तर
मुह में कुछ डालना हो या उठाना हो कुछ ऊपर से
मुह में कुछ डालना हो या उठाना हो कुछ ऊपर से
वो कार्य पूरा होने से पहेले, दम नहीं लेता
उसकी कोशिशें जारी रह्ती हैं,
काम पूरा होने तक
पर जब कामयाब हो जाता है ,
तो करता है नई मन्जिलों की तलाश
पर विराम किसी मन्जिल पर नहीं
बस रुकना नही ,करते जाना
एक चीज़ पाकर छोड़ना और आगे बड़ते जाना !
बस उसकी यही कामयाब होती कोशिशें
जिन्दगी में आगे बड़ने का साहस देती हैं
कभी तो लगता है कि मैं एक नदी हूं
और बहते जाना है
कभी धीमे, कभी तेज़
कभी समतल, कभी पथरीले
रास्तों पर बड़ते जाना
रास्तों पर बड़ते जाना
मुझे याद है, आज़ भी
उसकी उठने कि कोशिशें
फ़िर धीरे से खुद को घुट्नो पर सम्भाले रखना
किसी तरह आगे बड़ना और फ़िर रुक कर थमना
और कोशिश करना, खड़े होने की,
आगे बड़कर, हम सब की तरह चलने की
उस को लगता की हम बड़े है
पर हकीकत में,चल तो वो रहा है और हम खड़े है
जीवन के, एक एसे पड़ाव पर,जहां चलने से ज्यादा
रुकने का महत्व होता है
कुछ नया करने से पहले
बहुत कुछ सोचना होता है
ये हमारे बच्चे ही है
जिनके साथ हम अपना बचपन फ़िर से जी पाते है
और वोही हैं, जो हमारे जीवन में
पुन: नव चेतना ळाते हैं !!
Name of the Poet: Dr.Meenal Tiwari
Copyright: Original Author / Poet / Publisher
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This is an original poem and publishing first time
in my blog and looking forward for better break ……..
Name of the Poem: कामयाब होती कोशिशेंName of the Poet: Dr.Meenal Tiwari
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मीनल
019.जीवन
जीवन में बड़ी काम आती हैं,बच्चों की यै कोशिशें
जैसे दर्द सहिना और चुप रहिना
नीदं में भी जगना और सन्तुलन बनाये रखना
कुछ खाना और कुछ पाना
019.जीवन
जीवन में बड़ी काम आती हैं,बच्चों की यै कोशिशें
जैसे दर्द सहिना और चुप रहिना
नीदं में भी जगना और सन्तुलन बनाये रखना
कुछ खाना और कुछ पाना
हर हाल में हस्ते हस्ते जीवन बीताना !!
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Name of the Poem:
Name of the Poet: Dr.Meenal Tiwari
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Name of the Poem:
जीवन
Name of the Poet: Dr.Meenal Tiwari
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मीनल
020.Poem-फ़र्क
Name of the Poem: “Brush Aur Canvas”
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Name of the Poem: पराई हूं मैं
Name of the Poet: Dr.Meenal Tiwari
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020.Poem-फ़र्क
लड़के और लड़कियों में दुनिया फ़र्क करती है
मम्मी भी फ़र्क करती हैं,लड़कों से लाड़ लड़ाती है
और लड़कियों को मन की हर बात बताती हैं !!
पापा भी फ़र्क करते हैं,खुद बेटी के जूते पांलिश करतें हैं
और बेटे से अपने भी करा लिया करते हैं !!
एक दिन छुट्टी लेने पर ,मैडम भी फ़र्क करती हैं
लड़कियों को नोटबुक और लड़कों को डाट दिया करती हैं !!
दादा-दादी भी फ़र्क करते हैं,बेटियों के पैर छुआ करते हैं
और बेटों से अपने छुलवा लिया करते हैं !!
नवदुर्गाओं में आन्टी भी फ़र्क करती है,लड़कियों को अन्दर बुलाकर गिफ़्ट दिया करती हैं
और लड़को को लन्गूर कहा करती है !!
मन्दिर का पुजारी भी फ़र्क करता है,लड़कियों को फ़ूल,प्रसाद
और लड़को को तुलसी जल दिया करता है !!
दुकानदार भी फ़र्क करते हैं,खुल्ले पैसे मांगने पर
लड़कियों को दे देते हैं और लड़कों को मना करते हैं !!
ट्रेफ़िक पुलिस भी फ़र्क करती है,लड़कियों से गलती होने पर छोड़ दिया करती है
लड़को से गलती होने पर चालान लिया करती है !!
आंफ़िस में बास भी फ़र्क किया करते है,लड़कियों से अच्छे से बात किया करते हैं
और लड़को को बस काम के बोझ तले दबा दिया करते हैं !!
Name of the Poet: Dr.Meenal Tiwari
Copyright: Original Author / Poet / Publisher
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मीनल
021.“Brush Aur Canvas”
This poem also has published before in “6th jan 2004
Auditorial Rastavod Jhansi.
Auditorial Rastavod Jhansi.
Name of the Poem: “Brush Aur Canvas”
Name of the Poet: Dr.Meenal Tiwari
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मीनल
022. एक नारी की ह्र्दय वेदना
(अपनो के बींच पराई)
जन्म के साथ ही मां बाप ने,
पराई अमानत मान कर,
पाल पोश कर बड़ा किया !
बड़ा होने पर,
पराए हाथों में सोंप दिया !
ऐसे हाथों में,
जिनके अपने, अपने थे,
और पराई थी मैं !!
इनकी मां ने,
विवाह के साथ ही,
इनको समझाया था !
कि ये तो उन के अपने हैं,
क्योंकी इनको,
उन्हीने जाया था !!
कोई पराई जाई घर में आई थी,
तो वो थी मैं !
सब अपनों के बीच,
सब के लिये पराई !!
एक नया जन्म,
मैं से, हम बनीं!
मेरे स्वभिमान का अन्त,
इनके अहमं में वृद्धि
हमबिस्तर होने पर,
वस्तु सा बोध,
एक ऐसी वस्तु,
जो बाहर से आई थी !
इस्तमाल किये जाने पर भी,
सबके लिये पराई थी !!
धीरे से अपने आप को,
इस परिवेश में सम्भाला था !
सब की जरूरतों के हिसाब से,
खुद को ढाला था !
जिनको पाने के लिये,
खुद को मिटा दिया !
समय - समय पर,
उन्होने भी जता दिया,
कि पराई हूं मैं !!
एक बार फ़िर जन्मी थी,
नई आशाओं और नव चेतनाओं के साथ !
मेरी कोख में,
इनका वंश पल रहा था !
मुझे पहिली बार जीवन में,
कुछ अपना सा लग रहा था !
बड़ी सिद्दत से सींचा था,
उस को भी मैंने !
पर जैसे ही बड़ा हुआ ,
एक बार फ़िर जता दिया गया,
कि वो तो उनका अपना है !
और पराई हूं मैं !!
Name of the Poem: पराई हूं मैं
Name of the Poet: Dr.Meenal Tiwari
Copyright: Original Author / Poet / Publisher
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मीनल
बस मुझे ही पाओगे
मत उठो पुनः पुनः
तुम गिर चुके हो ,और गिरे ही रहोगे
मैने बहुत कोशिश की थी,तुम्हे साथ लेकर चलने की
पर तुम्हारी विछिप्त मानसिकता ने
मुझे कभी आगे बड़ने ही न दिया
थम कर बैठी भी थी तुम्हारे साथ
तुम्हें उठाने के लिये
पर तुम जब भी उठे थे
उठे थे, मुझे गिराने के लिये
क्या बिगाड़ा था ? मैने तेरा,
एक क्रति थी मैं भी उस ईशवर की
जिसे एक दीवार पर टांगने के बाद,
तुम भूल गये,सदा के लिये!
तुमसे जुड़े लोगों के मन को, बहलाती रही
और खुद ही अपने भाग्य को, सेहलाती रही
इन्तजार था तुम्हारी एक नज़र का
जो तुमने कभि, दी ही नहीं
देनी तो तुम्हे चाहिये थी
पर शायद ,वो नज़र ,तुम्हारे पास थी ही नहीं
जो मुझे धूप ,पानी से बचा पाती
मेरे पीछे से घुन और आगे जमीं धूल हटा पाती
बस एक बार तो नज़र उठा कर, देख लो तुम भी
आज़ भी वहीं हूं ,जहां तुमने सालों पहेले लाकर टांग दिया था
सिर्फ़ तुम्हारे लिये गड़ी गयी,तुम्हारी तकदीर के लिये पड़ी गयी
नजर उठाकर, देखो तो,जीवित भी हूं या मरी गयीं
आज़ भी तुम्हे ,आगे बड़ते देखने की आशा हैं
पर तुम मेरे सामने से निकल जाते हो
और मुझे कुछ नहीं नज़र आता हैं
यै घुन मुझे धीरे-धीरे खोखला करता जाएगा
तब कहीं शायद तुम्हें ,मुझे हटाने का याद आयेगा
उस दिन तुम मेरे करीब आओगे
उस दिन तुम्हे याद आयेगें ,वो सुहाने पल जब तुमने मुझे टांगा था
और तुम मुझे आते जाते देखा करते थे
या फ़िर ये कहूं,बिना देखे भी तुम मुझे सोचा करते थे
बस उस दिन के बाद से तुम मुझे जीवन भर भुला ना पाओगे,
सदा-सदा के लिये मुझे खुद के कऱीब पाओगें
उस दिन तुम मेरे विसर्जन के लिये मेरे पास आओगे
मुझे पुनः अपनी बाहों में लोगें और मुझपर अपनी नज़रे भी गड़ाओगे
फ़िर करीने से मेरी धूल भी हटाओगे
बस उस ही पल,मैं तुम्हें महसूस कर पाऊगी
और तुम्हारे रुप को अपनी आखों में बसा कर
जीवन से दूर चली जाऊगी
पर मुझे यकीन है
उस दिन के बाद, हर-पल, तुम्हे मेरी कमीं महसूस होगी
तुम निहारोगे बार-बार जहां मैं लगी थी
मेरी जगह तुम,कभी कुछ और न लगा पाओगे
जब भी देखोगे खाली दीवार,बस मुझे ही पाओगे
बस मुझे ही पाओगे,बस मुझे ही पाओगे.......................
बस मुझे ही पाओगे
मत उठो पुनः पुनः
तुम गिर चुके हो ,और गिरे ही रहोगे
मैने बहुत कोशिश की थी,तुम्हे साथ लेकर चलने की
पर तुम्हारी विछिप्त मानसिकता ने
मुझे कभी आगे बड़ने ही न दिया
थम कर बैठी भी थी तुम्हारे साथ
तुम्हें उठाने के लिये
पर तुम जब भी उठे थे
उठे थे, मुझे गिराने के लिये
क्या बिगाड़ा था ? मैने तेरा,
एक क्रति थी मैं भी उस ईशवर की
जिसे एक दीवार पर टांगने के बाद,
तुम भूल गये,सदा के लिये!
तुमसे जुड़े लोगों के मन को, बहलाती रही
और खुद ही अपने भाग्य को, सेहलाती रही
इन्तजार था तुम्हारी एक नज़र का
जो तुमने कभि, दी ही नहीं
देनी तो तुम्हे चाहिये थी
पर शायद ,वो नज़र ,तुम्हारे पास थी ही नहीं
जो मुझे धूप ,पानी से बचा पाती
मेरे पीछे से घुन और आगे जमीं धूल हटा पाती
बस एक बार तो नज़र उठा कर, देख लो तुम भी
आज़ भी वहीं हूं ,जहां तुमने सालों पहेले लाकर टांग दिया था
सिर्फ़ तुम्हारे लिये गड़ी गयी,तुम्हारी तकदीर के लिये पड़ी गयी
नजर उठाकर, देखो तो,जीवित भी हूं या मरी गयीं
आज़ भी तुम्हे ,आगे बड़ते देखने की आशा हैं
पर तुम मेरे सामने से निकल जाते हो
और मुझे कुछ नहीं नज़र आता हैं
यै घुन मुझे धीरे-धीरे खोखला करता जाएगा
तब कहीं शायद तुम्हें ,मुझे हटाने का याद आयेगा
उस दिन तुम मेरे करीब आओगे
उस दिन तुम्हे याद आयेगें ,वो सुहाने पल जब तुमने मुझे टांगा था
और तुम मुझे आते जाते देखा करते थे
या फ़िर ये कहूं,बिना देखे भी तुम मुझे सोचा करते थे
बस उस दिन के बाद से तुम मुझे जीवन भर भुला ना पाओगे,
सदा-सदा के लिये मुझे खुद के कऱीब पाओगें
उस दिन तुम मेरे विसर्जन के लिये मेरे पास आओगे
मुझे पुनः अपनी बाहों में लोगें और मुझपर अपनी नज़रे भी गड़ाओगे
फ़िर करीने से मेरी धूल भी हटाओगे
बस उस ही पल,मैं तुम्हें महसूस कर पाऊगी
और तुम्हारे रुप को अपनी आखों में बसा कर
जीवन से दूर चली जाऊगी
पर मुझे यकीन है
उस दिन के बाद, हर-पल, तुम्हे मेरी कमीं महसूस होगी
तुम निहारोगे बार-बार जहां मैं लगी थी
मेरी जगह तुम,कभी कुछ और न लगा पाओगे
जब भी देखोगे खाली दीवार,बस मुझे ही पाओगे
बस मुझे ही पाओगे,बस मुझे ही पाओगे.......................
मीनल
AWES
यह शिक्षा का एक मंदिर भी,
यह अथाह ज्ञान का सागर है I
हर विद्यालय की आस है ये ,
हर शिक्षक की अभिलाषा है II
हर शिक्षक की अपनी गागर है ,
यहाँ हर आसन में अनुशासन है I
यह ज्ञान का विशाल सागर हैI
इसमें जो गोते लगता है ,
वो सहज ही मोती पाता है II
यह AWES का वादा है ,
इसमें जो कोई भी आता हैI
वो ज्ञान की अविराम तरलता में ,
स्वतः ही रम जाता है II
जिसे न आता हो तैरना भी ,
वो तैरना सीख के जाता है I
और जो माहिर है तैराकी मैं ,
वो असा ध्य को भी साध पाता है II
कोई उम्र नहीं है सीखने की ,
ये दिग्गज शिक्षकों को भी सिखाता है I
नित नए शैक्षिक आविष्कार पारित कर ,
प्रगति के मार्ग पर ले जाता है II
नारी शक्ति का अप्रतिम्य प्रतीक है ये ,
इसके परीवर्तन की ,अपनी गाथा है I
सत्तर प्रतिशत प्रबंधन, महिलाओं द्वारा संचालित कर ,
प्रशस्ति का तुंग ध्वज लहराता है II
प्रतिदिन ,प्रतिपल,हरपल हरक्षण ,
AWES अपना सर्वश्रेष्ठ
देश तक पहुंचा रहा I
अर्पित कर तन, मन, धन और ज्ञान संपदा ,
विदुषी शिक्षकाएँ एवं निति निधान शिक्षक छात्रों हेतु बना रहा II
अध्यापिका डॉ. मीनल तिवारी
ए.पी.एस. (पी. आर. टी. सी. )
When I saw sunrise
When I was travelling to the school in my car,
I saw something that is too far
I saw a ball in the sky.
Which was too very high
When I was sitting in my car.
It was orange and bright,
But when I reached the school
It was yellow and bright.
When I reached the class
My teacher told me that
It is a sunrise.
Adamya Tiwari
II A, APS, PRTC
बहुव्यापी कला
जब जब मैं अपने बच्चों को लैंडस्केप पढ़ाती हूं,
स्वत: ही उन्हें अन्य विषयों से संबंधित पाती हूं I
जब-जब दृश्यों का फाउंडर बनाते हैं
तब शेप्स और ऐंगल्स को आसानी से समझ जाते हैं II
आर्ट में अनुपात का होना बहुत जरूरी है I
रंगों की केमिस्ट्री जाने बिना हर पेंटिंग अधूरी है II
कलर मिक्सिंग केमिकल रिएक्शंस पर ही तो आधारित है I
आखिर ! रंगों से ही तो बनती सारी दुनिया हमारी है II
बारिश की बूंद हो या एटमॉस्फेरिक पर्सपेक्टिव का फसाना ,
पर्यावरण संबंधी छोटे-छोटे तथ्य यूं ही समझ जाना II
हमारे बच्चे फिजिक्स के रिफ्लेक्शन - रिफ्रेक्शन में अंतर करते नहीं अपितु बनाते हैं I
डिफरेंट कलर टेक्निक्स में न्यूटन लॉ से भी फायदा उठाते हैं I
जाने-अनजाने में ही कितने फिजिक्स एक्सपेरिमेंट कर जाते हैं II
आर्ट इंटीग्रेशन की यह छोटी सी कोशिश हमारी है I
हर आर्टिस्ट के पास, हर एक विषय से संबंधित एक छोटी सी पिटारी है II
हम रंगों के माध्यम से इतिहास की शौर्य गाथा
को सजाते हैं I
तभी तो अपनी कलाकृतियों के माध्यम से,
इस समाज में जागरूकता फैलाते हैं II
Awesome poems and paintings
ReplyDelete"aapke dard se jab rubaru hoan hum(parai main)
ReplyDeletehamein laga aapne ek pal main hamein aaina dikha diya
per agle hi pal(jindagi main)jindagi ki rah per chalna sikha diya
kya andaz he aapka jindagi jeene ka mohtrma
aaj aapne haman bhi jeena sikha diya
jyoti"
thank you
Delete