श्री महालक्ष्मी व्रत
श्री महालक्ष्मी व्रत का प्रारम्भ भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि के
दिन से किया जाता है(Maha Lakshami
fast is started on Ashtami of Bhadrapad Shukla Paksha). वर्ष 2011 में यह व्रत 4 सितम्बर के दिन शुरु होगा. यह व्रत राधा अष्टमी के
ही दिन किया जाता है. यह व्रत 16 दिनों तक चलता है. यह व्रत इस वर्ष 4 सितम्बर से शुरु होकर 19 सितम्बर तक रहेगा. इस व्रत में लक्ष्मी जी का पूजन किया जाता है.
श्री महालक्ष्मी व्रत विधि | Mahalakshmi
Vrat Vidhi
सबसे पहले प्रात:काल में स्नान आदि कार्यो से निवृ्त होकर, व्रत का संकल्प लिया जाता है. व्रत का संकल्प लेते समय निम्न मंत्र का उच्चारण किया जाता है.
करिष्यsहं महालक्ष्मि व्रतमें त्वत्परायणा ।
तदविध्नेन में यातु समप्तिं स्वत्प्रसादत: ।।
अर्थात हे देवी, मैं आपकी सेवा में तत्पर होकर आपके इस महाव्रत का पालन करूंगा. आपकी कृ्पा से यह व्रत बिना विध्नों के पर्रिपूर्ण हों, ऎसी कृ्पा करें.
यह कहकर अपने हाथ की कलाई में बना हुआ डोरा बांध लें, जिसमें 16 गांठे लगी हों, बाध लेना चाहिए. प्रतिदिन आश्चिन मास की कृ्ष्ण पक्ष की
अष्टमी तक यह व्रत किया जाता है. और पूजा की जाती है. व्रत पूरा हो जाने पर वस्त्र से एक मंडप बनाया जाता है. उसमें लक्ष्मी जी की
प्रतिमा रखी जाती है.
श्री लक्ष्मी को पंचामृ्त से स्नान कराया जाता है. और फिर उसका सोलह प्रकार से पूजन किया जाता है. इसके बाद व्रत करने वाले उपवासक को ब्रह्माणों को भोजन कराया जाता है. और दान- दक्षिणा दी जाती है.
पूजन सामग्री में चन्दन, ताल, पत्र, पुष्प माला, अक्षत, दूर्वा, लाल सूत, सुपारी, नारियल तथा नाना प्रकार के भोग रखे जाते है. नये सूत 16-16 की संख्या में 16 बार रखा जाता है. इसके बाद निम्न मंत्र का उच्चारण किया जाता है.
क्षीरोदार्णवसम्भूता लक्ष्मीश्चन्द्र सहोदरा ।
व्रतोनानेत सन्तुष्टा भवताद्विष्णुबल्लभा ।।
अर्थात क्षीर सागर से प्रकट हुई लक्ष्मी जी, चन्दमा की सहोदर, श्री विष्णु वल्लभा,
महालक्ष्मी इस व्रत से संतुष्ट हो. इसके बाद चार ब्राह्माण और 16 ब्राह्माणियों को भोजन करना चाहिए. इस प्रकार यह व्रत पूरा होता है. इस प्रकार जो इस व्रत को करता है, उसे अष्ट लक्ष्मी की प्राप्ति होती है.
16वें दिन इस व्रत का उद्धयापन किया जाता है. जो व्यक्ति किसी कारण से इस व्रत को 16 दिनों तक न कर पायें, वह 3 दिन तक भी इस व्रत को कर सकता है. व्रत के तीन दोनों में प्रथम दिन, व्रत का आंठवा दिन व व्रत के 16वें दिन का प्रयोग किया जा सकता है. इस व्रत को लगातार 16वर्षों तक करने से विशेष शुभ फल प्राप्त होते है. इस व्रत में अन्न ग्रहण नहीं करना चाहिए. केवल फल, दूध, मिठाई का सेवन किया जा सकता है.
महालक्ष्मी व्रत कथा | Mahalakshmi
Vrat Katha in Hindi
प्राचीन समय की बात है, कि एक बार एक गांव में एक गरीब ब्राह्माण रहता था. वह ब्राह्माण नियमित रुप से श्री विष्णु का पूजन किया करता था. उसकी पूजा-भक्ति से प्रसन्न होकर उसे भगवान श्री विष्णु ने दर्शन दिये़. और ब्राह्माण से अपनी मनोकामना मांगने के लिये कहा, ब्राह्माण ने लक्ष्मी जी का निवास अपने घर में होने की इच्छा जाहिर की. यह सुनकर श्री विष्णु जी ने लक्ष्मी जी की प्राप्ति का मार्ग ब्राह्माण को बता दिया, मंदिर के सामने एक स्त्री आती है,जो यहां आकर उपले थापती है, तुम उसे अपने घर आने का आमंत्रण देना. वह स्त्री ही देवी लक्ष्मी है.
देवी लक्ष्मी जी के तुम्हारे घर आने के बार तुम्हारा घर धन और धान्य से भर जायेगा. यह कहकर श्री विष्णु जी चले गये. अगले दिन वह सुबह चार बचए ही वह मंदिर के सामने बैठ गया. लक्ष्मी जी उपले थापने के लिये आईं, तो ब्राह्माण ने उनसे अपने घर आने का निवेदन किया. ब्राह्माण की बात सुनकर लक्ष्मी जी समझ गई, कि यह सब विष्णु जी के कहने से हुआ है. लक्ष्मी जी ने ब्राह्माण से कहा की तुम महालक्ष्मी व्रत करो, 16 दिनों तक व्रत करने और सोलहवें दिन रात्रि को चन्द्रमा को अर्ध्य देने से तुम्हारा मनोरथ पूरा होगा.
ब्राह्माण ने देवी के कहे अनुसार व्रत और पूजन किया और देवी को उत्तर दिशा की ओर मुंह् करके पुकारा, लक्ष्मी जी ने अपना वचन पूरा किया. उस दिन से यह व्रत इस दिन, उपरोक्त विधि से पूरी श्रद्वा से किया जाता है.
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